परम वैज्ञानिक भगवान महावीर
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₹350.00
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जैन परिवार में जन्म और विज्ञान का विद्यार्थी होने पर भी 65 वर्ष की आयु में बहुत विलंब के पश्चात मेरा जैन दर्शन की वैज्ञानिकता से परिचय हुआ| इस सत्य का ज्ञान होने पर निर्मित अपराध-बोध से बड़ी ग्लानि हुई| इस दोष का प्रायश्चित्त करने हेतु जैन दर्शन के विज्ञान का अभ्यास करने का निश्चय किया| इस अध्ययन में उत्पन्न कठिनाइयों के समाधान ढूंढता रहा| कहीं-कहीं आवश्यक शोध-कार्य भी किया| विशेषतः विज्ञान के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने में यह अनिवार्य ही था| शोध कार्य और मनन, चिंतन और मंथन से दृष्टि का विकास हुआ|
गत लगभग 500 से अधिक दिनों से प्रतिदिन एक संदेश ट्वीटर (Twitter) पर भेज रहा हूं| इस संदेश को बहुत अच्छा प्रतिसाद मिला है| अभी लगभग 1750 से अधिक सदस्य इस संदेश को नियमित रूप से पढ़ते हैं| कुछ पाठक शंकायें उपस्थित करते हैं, उनके समाधान भी ट्वीटर पर भेजता हूं| लगभग 1000 से अधिक व्हाट्सअप (WhatsApp) सदस्यों को प्रतिदिन एक संदेश भेज रहा हूं| इसमें पहले सामायिक साधना पर 201 संदेश प्रस्तुत किये| इन संदेशों द्वारा सामायिक साधना का सही अर्थ पाठक/साधक समझें, इसमें उपयोजित विज्ञान वे जानें-समझें, साधना के वास्तविक लाभ किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं, इससे वे परिचित हो, इसका विश्लेषण दादा-दादी और पोता-पोती संवाद रूप में प्रस्तुत किया है| (यह पुस्तक स्वतंत्र रूप से प्रकाशित हो रही है|) उसके पश्चात प्रतिक्रमण ज्ञान-विज्ञान पर संदेश भेजने का क्रम निरंतर जारी है|
पट 01: चिरस्मरणीय यात्री : मंगलाचरण एवं वंदन
पट 02: चिंतन-प्रेरक यात्री : विषय प्रवेश
अंक 01: सम्पादकीय: परम्पराओं से मुक्त, विज्ञान से संपृक्त| प्रास्ताविक: जैन दर्शन: अनादि-अनंत काल; अंक 02: पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त, (पुनर्जन्म सिद्धान्त के प्रमाण); अंक 03: जातिस्मरण ज्ञान; (जातिस्मरण के अस्तित्व के साक्ष्य, शाश्वत जीवन प्रमाण)
पट 03: अनादि यात्री : अनंत पुनर्जन्मों की वास्तविकता, तथ्य या मिथ
अंक 01: नयसार, अंक 02: सौधर्मेन्द्र, अंक 03: मरीचि, अंक 04: ब्रह्मेन्द्र, अंक 05: कौशिक ब्राह्मण, अंक 06: ईशानेन्द्र, अंक 07: पुष्यमित्र, अंक 08: सौधर्मेन्द्र, अंक 09: अग्निप्रद्योत, अंक 10: ईशानेन्द्र, अंक 11-16: ब्राह्मण और देव, अंक 17: विश्वभूति, अंक 18: महाशुक्रेन्द्र, अंक 19: वासुदेव त्रिपृष्ठ, अंक 20: सप्तम नारक, अंक 21: केशरी सिंह, अंक 22: राजकुमार विमल, अंक 23: प्रियमित्र चक्रवर्ती, अंक 24: महाशुक्रेन्द्र, अंक 25: नन्दनकुमार, अंक 26: प्राणतेन्द्र|
पट 04: संसार यात्री : गर्भ से दीक्षा तक
अंक 01: दार्शनिक उथल-पुथल, (विभिन्न विचारधाराओं का जन्म, जन्मपूर्व स्थिति, जीवन-कालीन स्थिति); अंक 02: वर्द्धमान: मध्य
लोक में जन्म, (च्यवन कल्याणक, स्वप्नविज्ञान); अंक 03: अनहोनी: भिक्षुकुल में गर्भ, (प्राचीन शल्यक्रिया, विज्ञान और जैन शल्यक्रिया, चौदह स्वप्नों का अंतरण, गर्भ में ही ज्ञान, गर्भाशय में प्रतिज्ञा); अंक 04: जन्म कल्याणक; त्रिलोक में शांति की अनुभूति, नामकरण प्रीतिभोज, जन्मकालीन स्थिति); अंक 05: बाल्यावस्था: प्रौढ़त्व, अलिप्तता, एकांतप्रियता, विनम्रता; साहस और धैर्य, आदर और विनय, क्या ऐसा संभव है? अद्भुत बालक); अंक 06: कुमारावस्था; (गृह-साधना, साधना की गंभीरता, सामाजिक अन्याय); अंक 07: युवावस्था: राजकाज में अरुचि; ध्यान में अधिक रुचि, ब्रह्म और अब्रह्म, विवाह योग्य आदर्श युवक, अवधिज्ञान: भोगावली कर्म शेष, यशोदा के मनोभाव, वर्द्धमान की करुणा); अंक 08: गृहस्थावस्था; (विचारों का साक्षी, उत्सवों में विवेक का प्रयोग, पति-पत्नी का मानो-मिलन, अद्वैत पथारोहण, आत्मजा प्रियदर्शना, राज-भवन साधना, उपवन में ध्यान-रमण, पूर्वाभास, ब्रह्मचर्य नियमन, गृहवास में साधना); अंक 09: दीक्षा कल्याणक; दीक्षा के दृढ़ भाव, वर्षी दान, दीक्षा ग्रहण|
पट 05: आत्म-साधना यात्री : दीक्षा से आत्म-शिक्षा तक
अंक 01: आस्थिकग्राम: प्रथम चातुर्मास: सोमदत्त ब्राह्मण, ग्वाला द्वारा आक्रमण, निद्रा विजय, प्रथम पारणा, दंश-मशक परीषह, युवा दल की दृष्टि, लुब्ध कामुक स्त्रियों की दृष्टि, दुईज्जंतक आश्रम, भौतिकता से अस्पृष्ट, वर्द्धमान-नगर से आस्थिकग्राम, आस्थिकग्राम: इतिहास कथन, भयभीत ग्रामवासी और निर्भय प्रवासी, भय विजय, शूलपाणि और फूलपाणि का द्वंद्व, संस्कार निर्जरण, चिंता और हर्ष, मनोवैज्ञानिक दृष्टि, नैमित्तिक शास्त्री उत्पल, भविष्य के चिह्न; अंक 02: नालंदा: दूसरा चातुर्मास: मोराक सन्निवेश का अच्छन्दक, पूर्ण अपरिग्रह, निर्भयता की परीक्षा, प्रचंड का प्रशांत से सामना, चंड मुनि: उद्दंड पुत्र, क्या पैर से दूध धारा संभव है? चंड क्रोधी: प्रचंड सहनशील, पाक्षिक उपवास का पारणा, राजा परदेसी, दो कुशल नाविक, नैमित्तिक खेमिल, सामुद्रिक पुष्प, गोशालक की भेंट, खोटा सिक्का, दान-पुण्य; अंक 03: चम्पा: तीसरा चातुर्मास: गोशालक और खीर हांडी, नन्द को पारणे का लाभ; अंक 04: पृष्ठचम्पा: चौथा चातुर्मास: गोशालक और पार्श्वापत्य साधु, गोशालक को पीड़ा; अंक 05: सूर्य-स्नान: वैज्ञानिक तथ्य, गोशालक और आग का भय, हलेद्दूक उद्यान, काल-हस्ती और मेघ-हस्ती, श्रमण वर्द्धमान का चिंतन, ध्यान में तल्लीनता 2: क्षुधा-तृष्णा विजय, अनार्य देश की ओर, कर्म सिद्धान्त की कड़ियां, अनार्य व्यवहार, पाखंडियों का साम्राज्य; अंक 06: भद्दियानगर: छठा चातुर्मास: मौन भी अप्रिय, गोशालक और पार्श्वापत्य मुनि, श्रमण और विजया-प्रगल्भा साध्वियां, वैशाली लोहार-शाला, कटपुटना व्यंतरदेवी; अंक 07: आलंभिया: सातवां चातुर्मास: श्रमण महावीर और गोशालक; अंक 08: राजगृह: आठवां चातुर्मास: लोहार्गला महाराज जीतशत्रु, पूरीमताल के वग्गुर श्रेष्ठि; अंक 09: वज्रभूमि: नौवां चातुर्मास: परीषहों की झड़ी; अंक 10: श्रावस्ती: दसवां चातुर्मास: गोशालक और तिल का पौधा, गोशालक और तापस वैश्यायन, गोशालक और तेजोलेश्या का ज्ञान, गोशालक और तेजोलेश्या का प्रयोग, वीणा वादक श्यामाक और मुनि वर्द्धमान, गणराज शंख के भानेज चित्त द्वारा रक्षा, अवधिज्ञानी गाथापति आनंद, श्रावस्ती की रंगशाला; अंक 11: वैशाली: ग्यारहवां चातुर्मास: ध्यान की गहराई, निरंतर ज्ञान-वृद्धि, संगमदेव द्वारा कठोर उपसर्ग, संगमदेव द्वारा विघ्न, शासक सुमागध, तोसलिग्राम का क्षत्रिय, दयासागर अणगार, जीर्ण का अंतराय, गणराज शंख द्वारा रक्षा; अंक 12: चम्पा: बारहवां चातुर्मास: पूरण श्रेष्ठि का भ्रम, चमरेन्द्र का अज्ञान, माहेन्द्र क्षत्रिय, ग्वाला आग-बबूला, अस्तित्व का सहयोग, वत्स शासक शतानीक और अंग शासक दधिवाहन, धनावह श्रेष्ठी, दासी, पुत्री या सौत? चन्दना की मुक्ति, दासी नहीं: राजकुमारी, भायल वैश्य का अपघात, स्वातिदत्त ब्राह्मण|
पट 06: केवलज्ञानी यात्री : आत्म-शिक्षा से विक्षा तक
अंक 01: राजगृह: तेरहवां चातुर्मास: अंतिम परीषह, खरक वैद्य और सिद्धार्थ वणिक, वर्द्धमान से भगवान, ज्ञान विकास की सीढ़ियां, प्रथम देशना|
पट 07: विश्व-कल्याण यात्री : विक्षा से समाज शिक्षा तक
अंक 01: राजगृह: तेरहवां चातुर्मास: तेजोवलय का प्रभाव, प्रथम भावित देशना का प्रसंग, यज्ञशाला में हलचल, इंद्रभूति गौतम का समवसरण में आगमन, अग्निभूति का भ्रम-भंग, वायुभूति का ग्रंथि-भेद, व्यक्त भारद्वाज, सुधर्मा वैशायन, मंडित वाशिष्ठ, मौर्यपुत्र काश्यप, अकंपित और अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास कौण्डिन्य, क्या ब्राह्मणों का आकर्षण मात्र कल्पना है? संस्कृत में धर्म-ज्ञान, जनभाषा का क्रांतिकारी प्रयोग, इन्द्रों द्वारा तीर्थंकर सेवा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, पुत्री चन्दना से साध्वी चंदनबाला, तीर्थंकर भगवान महावीर, आत्म अनाथ है, आत्मा नाथ है, चतुर्विध संघ में वृद्धि, मेघकुमार, सुलस का निश्चय, श्रावक पुनिया; अंक 02: वैशाली: चौदहवां चातुर्मास: माता देवानन्दा की अनुभूति, जमालि-प्रियदर्शना; अंक 03: वाणिज्यग्राम : पंद्रहवां चातुर्मास: जयंती उपासिका की जिज्ञासा, सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठ, आनंद गाथापति; अंक 04: राजगृह : सोलहवां चातुर्मास: सुकुमार शालिभद्र, भद्रा की देश-भक्ति, महाराज श्रेणिक और श्रेष्ठि शालिभद्र, शालिभद्र की विरक्ति, श्रेष्ठि धनपति, गणधर गौतम की जिज्ञासा, रोहिणेय चोर, रोहिणेय और भगवान की वाणी, रोहिणेय और अभयकुमार में आंख-मिचौली, रोहिणेय की जागृति, रोहिणेय का आत्मोत्थान; अंक 05: वाणिज्यग्राम : सत्रहवां चातुर्मास: कामदेव गाथापति, उदायन और चंडप्रद्योत, उदायन की आंतरिक शुभ भावना; अंक 06: राजगृह : अठारहवां चातुर्मास: पुद्गल परिव्राजक, आर्द्रककुमार और श्रीमती, आर्द्रककुमार और अंग-रक्षक, आर्द्रककुमार और आचार्य गोशालक, आर्द्रककुमार और शाक्यापत्य बौद्ध भिक्षुक, आर्द्रककुमार और वेदान्ती ब्राह्मण, आर्द्रककुमार और एकदंडी परिव्राजक, आर्द्रककुमार और हस्ती तापस, गाथापति चुलनीपिता, गाथापति सुरादेव, अर्जुन मालाकार, श्रेष्ठि पुत्र सुदर्शन, सुदर्शन की सुरक्षा, संकट विमोचन, अर्जुन का आचार पालन, नन्द मणियार, मुनि शालिभद्र और मुनि धनपति, भद्रा माता का आक्रोश, समवसरण में कोढ़ी का आगमन, पुनिया की सामायिक; अंक 07: राजगृह : उन्नीसवां चातुर्मास: महाराज श्रेणिक की धर्म-प्रभावना, अभयकुमार को अनुमति; अंक 08: वैशाली : बीसवां चातुर्मास: मृगावती और चंडप्रद्योत, जयंती श्रमणोपासिका, गाथापति चुल्लशतक; अंक 09: वाणिज्यग्राम इक्कीसवां चातुर्मास: गाथापति कुंडकौलिक, गाथापति शकडालपुत्र: भगवान महावीर, शकडालपुत्र: बर्तनों की निर्मिति, शकडालपुत्र: दृढ़ श्रद्धा, शकडालपुत्र: देव द्वारा छलना, अतिमुक्तक और गणधर गौतम, अतिमुक्तक: माता और पुत्र संवाद, अतिमुक्तक: भगवान का स्पष्ट संदेश; अंक 10: राजगृह : बाईसवां चातुर्मास: गाथापति महाशतक, पार्श्व स्थविरों का समाधान, गौतम की जिज्ञासा; अंक 11: वाणिज्यग्राम : तेईसवां चातुर्मास: स्कंदक परिव्राजक, स्कंदक परिव्राजक और गणधर गौतम, स्कंदक परिव्राजक का स्वागत, गाथापति नंदिनीपिता, गाथापति सालिहीपिता; अंक 12: राजगृह : चौवीसवां चातुर्मास: तुंगियानगरी के श्रावक, जमालि निह्णव के मार्ग पर; अंक 13: मिथिला : पच्चीसवां चातुर्मास: कोणिक की भक्ति, क्षेमक और धृतिधर; अंक 14: मिथिला : छब्बीसवां चातुर्मास: जमालि का भ्रम, तत्त्वज्ञ श्रावक ढंक की कुशलता, रथमूसल संग्राम का बीज, शांतिपूर्ण समाधान का प्रयास, महाशिला-कंटक युद्ध की विभीषिका, युद्ध का दुष्परिणाम और धर्म-जागृति; अंक 15: मिथिला : सत्ताईसवां चातुर्मास: हल्ल-विहल्ल की दीक्षा, स्वयं घोषित तीर्थंकर गोशालक; गोशालक द्वारा भगवान को चेतावनी, गोशालक द्वारा झूठ का सहारा, गोशालक को अंतर्चक्षु से दर्शन, सिंह अनगार का समाधान, यक्ष प्रश्न: “ऐसा क्यों?” अंक 16: वाणिज्यग्राम : अट्ठाईसवां चातुर्मास: केसी श्रमण और गौतम गणधर संवाद, शिव राजर्षि; अंक 17: राजगृह : उनतीसवां चातुर्मास: नन्द मणियार और पुष्करिणी; अंक 18: वाणिज्यग्राम : तीसवां चातुर्मास: जमालि का वाद-विवाद, शिष्य आत्मस्थ, गुरु छद्मस्थ, सोमिल ब्राह्मण के प्रश्नोत्तर; अंक 19: वैशाली : इकतीसवां चातुर्मास: श्रमणोपासक अंबड़; अंक 20: वैशाली : बत्तीसवां चातुर्मास: पार्श्वापत्य अणगार गांगेय; अंक 21: राजगृह : तैंतीसवां चातुर्मास: गणधर गौतम की जिज्ञासा, मेंढक की मुक्ति; अंक 22: नालंदा : चौतीसवां चातुर्मास: निर्ग्रंथ मद्दूक श्रावक, कालोदायी-शैलोदायी, रोह अनगार, पेढालपुत्र उदक; अंक 23: वैशाली : पैंतीसवां चातुर्मास: आनंद गाथापति का
अवधिज्ञान, गौतम गणधर और आनंद श्रावक, आनंद गाथापति की भवितव्यता, कामदेव की भवितव्यता, गणधर प्रभास; अंक 24: मिथिला : छत्तीसवां चातुर्मास: महाराज किरात; अंक 25: राजगृह : सैंतीसवां चातुर्मास: कामदेव गाथापति, कामदेव श्रावक की भवितव्यता, गणधर प्रभास; अंक 26: नालंदा : अड़तीसवां चातुर्मास: गौतम गणधर की जिज्ञासा, चुलनीपिता श्रावक की भवितव्यता, सुरादेव की भवितव्यता; गणधर अचलभ्राता और मेतार्य की भवितव्यता, अंक 27: मिथिला : उनतालीसवां चातुर्मास: गौतम गणधर की जिज्ञासा; अंक 28: मिथिला : चालीसवां चातुर्मास: चुल्लशतक की भवितव्यता; अंक 29: राजगृह : इकतालीसवां चातुर्मास: कुंडकौलिक की भवितव्यता, शकडाल पुत्र की भवितव्यता, गणधर अग्निभूति और गणधर वायुभूति की भवितव्यता; अंक 30: पावापुरी : बयालीसवां चातुर्मास: महाशतक की भवितव्यता, गणधर व्यक्त, मंडित, अकंपित और मौर्यपुत्र की मुक्ति|
पट 08: निर्वाण यात्री : समाज शिक्षा से आत्म-मुक्ति तक
अंक 01: भगवान की परीषह शृंखला, अंतिम देशना स्थल, धर्म का ह्रास, धर्म का अधःपतन, अवसर्पिणी काल में सृष्टि की दुर्दशा; अंक 02: गौतम का विछोह, सोमदत्त शर्मा को प्रतिबोध का दायित्व; अंक 03: भस्म ग्रह से पीड़ा (आयु वृद्धि प्रार्थना), विश्व कल्याण उपदेश; अंक 04: दीपावली महोत्सव, मोक्ष और निर्वाण कल्याणक; अंक 05: गौतम गणधर और केवलज्ञान, जीव अकेला आता-जाता है; अंक 06: पट्टधर परंपरा; अंक 07: दस आश्चर्य और सात समुद्घात; अंक 08: दुष्ट छाया की समाप्ति, सिक्के के दो पहलू; अंक 09: अंतिम दो उपासक और सुधर्मा स्वामी का मोक्ष|
पट 09: विज्ञान यात्री : भव-भव शृंखला
अंक 01: परिशिष्ट: पुनर्जन्म वैज्ञानिक प्रमाण
हृदोद्गत : उत्तर संवाद