चैत-राम
(जल, जंगल, जमीन, जानवर, जन और मैं)
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स्वार्थ ने व्यक्ति को अंधा बना दिया है। आज कल हर एक व्यक्ति अपनी निजी जिंदगी को सुखकर बनाने के लिए स्वार्थ की इस अंधी दौड़ में भाग रहा है। नि:स्वार्थ भाव से किसी कार्य को करने वालों की तादाद नगण्य होती जा रही हैं। ऐसे समय में मेरी भेंट धुलियाँ जनपद के साक्री तहसील में स्थित ‘बारीपाड़ा’ गाँव के श्री. चैतराम पवार से हुई। चैतराम पवार उच्च शिक्षा विभूषित होते हुए भी अपनी जन्मभूमि से जुड़े रहे। ‘जल, जमीन, जंगल, जानवर और जन’ के लिए उनके द्वारा चलाई जा रही पहल आज पूरे देश के लिए आदर्श और देश के हर व्यक्ति के लिए सराहनीय हैं। उनके कार्य-कर्तृत्व को जानने के पश्चात मुझे महात्मा गांधी जी का स्मरण हुआ। महात्मा गांधी जी का देश के प्रति त्याग और नि:स्वार्थ जन सेवा भाव की एक छोटी-सी झलक मुझे चैतराम पवार में दिखाई दी। मन में आया कि, जनकल्याण के लिए समर्पित ऐसे व्यक्ति के जनकल्याण संघर्ष को मैं अपने तरीके से शब्दबद्ध करु। प्रस्तुत उपन्यास की कथावस्तु में चित्रित प्रसंग ‘आधी हकीकत आधा फसाना’ की उक्ति पर आधारित है। इस लघुउपन्यास की कथावस्तु को आगे बढ़ाने के लिए कुछ प्रसंगों को कल्पित किया हुआ हैं।
– डॉ. के. डी. बागुल
Chait-Ram (Jal, Jangal, Jamin, Janwar, Jan Aur Main)