जैन परिवार में जन्म और विज्ञान का विद्यार्थी होने पर भी 65 वर्ष की आयु में बहुत विलंब के पश्चात मेरा जैन दर्शन की वैज्ञानिकता से परिचय हुआ| इस सत्य का ज्ञान होने पर निर्मित अपराध-बोध से बड़ी ग्लानि हुई| इस दोष का प्रायश्चित्त करने हेतु जैन दर्शन के विज्ञान का अभ्यास करने का निश्चय किया| इस अध्ययन में उत्पन्न कठिनाइयों के समाधान ढूंढता रहा| कहीं-कहीं आवश्यक शोध-कार्य भी किया| विशेषतः विज्ञान के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने में यह अनिवार्य ही था| शोध कार्य और मनन, चिंतन और मंथन से दृष्टि का विकास हुआ|
गत लगभग 500 से अधिक दिनों से प्रतिदिन एक संदेश ट्वीटर (Twitter) पर भेज रहा हूं| इस संदेश को बहुत अच्छा प्रतिसाद मिला है| अभी लगभग 1750 से अधिक सदस्य इस संदेश को नियमित रूप से पढ़ते हैं| कुछ पाठक शंकायें उपस्थित करते हैं, उनके समाधान भी ट्वीटर पर भेजता हूं| लगभग 1000 से अधिक व्हाट्सअप (WhatsApp) सदस्यों को प्रतिदिन एक संदेश भेज रहा हूं| इसमें पहले सामायिक साधना पर 201 संदेश प्रस्तुत किये| इन संदेशों द्वारा सामायिक साधना का सही अर्थ पाठक/साधक समझें, इसमें उपयोजित विज्ञान वे जानें-समझें, साधना के वास्तविक लाभ किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं, इससे वे परिचित हो, इसका विश्लेषण दादा-दादी और पोता-पोती संवाद रूप में प्रस्तुत किया है| (यह पुस्तक स्वतंत्र रूप से प्रकाशित हो रही है|) उसके पश्चात प्रतिक्रमण ज्ञान-विज्ञान पर संदेश भेजने का क्रम निरंतर जारी है|