काव्यशास्त्र और साहित्य के भेद
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काव्यशास्त्र की सुदीर्घ परम्परा है। इसका इतिहास लगभग दो हजार वर्षों में फैला हुआ है। ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय चिंतन की परंपरा पल्लवित और विकसित होती रही। जीवन का प्रवाह अनन्त है। अनादि काल से आज तक मानव जीवन के इस अनन्त प्रवाह ने अपने भाव और बुद्धि प्रवाह की असीमितता को मापने-जोखने के लिए अनवरत अध्यवसायपूर्ण कर्म के माध्यम से अनेक प्रकार के घाट निर्मित किए है। शास्त्र, साहित्य, कला, ज्ञान, विज्ञान कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है कि जिसे मानव के भाव और बुद्धि से संचालित कर्म ने अपने स्पर्श द्वारा अलौकिक एवं उपयोगी न बना दिया हो।
प्रस्तुत ग्रंथ में चिंतन की इस सुदीर्घ परम्परा के प्राय: सभी महत्वपूर्ण मोडों को समेटने का प्रामाणिक प्रयास किया गया है। साथ ही भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र के महान आचार्यो से लेकर बीसवी शताब्दी के आलोचकों के प्रमुख काव्य-सिद्धांतों का विवेचन-विश्लेषण किया गया है। नि:संदेह यह ग्रंथ छात्रोपयोगी बनाने की दिशा में तथा जिज्ञासु छात्रों को दृष्टिगत रखते हुए लिखा गया है।
Kavyashastra Aur Sahitya Ke Bhed
- काव्य की परिभाषा : काव्य : लक्षण और परिभाषा, काव्य हेतु, काव्य प्रयोजन
- काव्य के तत्त्व एवं शब्द-शक्ति : काव्य के तत्त्व, शब्द-शक्ति
- रस : परिभाषा, रस के अंग, रस के भेद
- अलंकार : अलंकार : स्वरूप, परिभाषा, काव्य में अलंकारों का महत्त्व, अलंकारों के प्रकार
- छंद : छंद : स्वरूप, अर्थ, छंद का काव्य में स्थान, छंद के तत्त्व, छन्द के प्रकार
- काव्य के विविध भेद : काव्य के विविध भेद, प्रबंध और मुक्त काव्य का स्वरूप, प्रबंध काव्य के भेद
- गद्य के भेद : उपन्यास, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज, आलोचना
- दृश्य काव्य : नाटक, एकांकी और नाटक के भेद : नाटक की परिभाषा, एकांकी : परिभाषा और तत्व, नाटक के भेद