• 1980 के बाद हिन्दी साहित्य

    21 वी सदी में ग्रामीण और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर दृष्टिपात करते हुए आज की सदी में ग्रामीण और आदिवासियों का चिंतन आवश्यक है। स्वातंत्र्यपूर्व काल आज तक कई साहित्यकारों ने अपनी कलम चलाई है। विशेष रूप में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का समग्र साहित्य ग्राम जीवन के विविध अंगोंसे परिपूर्ण है। डॉ. रामदरश मिश्र और डॉ. विवेकी राय के ग्राम जीवन के सच्चे चितेरे है। 1980 बाद भी मिथिलेश्वर, मैत्रेयी पुष्पा, चित्रा ुदगल, मार्कण्डेय, लक्ष्मीनारायण लाल, गोविंद मिश्र, संजीव, केदारनाथ सिंह, महाश्वेतादेवी, फणेश्वरनाथ रेणु, कृष्णा सोबती, नागार्जुन, डॉ. शिवप्रसाद सिंह, राही मासूम रझा, विद्यासागर नौटियाल, मधुकर सिंह, शेखर जोशी, मोहनदास नैमिशराय, ओमप्रकाश वाल्मिकी, सरिता बडाइक, मलखान सिंह, अरूण कमल, लीलाधर जगूडी, लीलाधर मंडलोई आदि रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में जीवंत ग्राम जीवन साकार किया है।
    1980 के बाद भारतीय ग्राम जीवन में आये बदलावों और उकी चुनौतियों को अभिव्यक्त करनेवाले हिन्दी साहित्य का विचार-विमर्श करने का प्रयास किया गया है। ग्रामीण जीवन को लेकर जो अहं सवाल और समस्याएँ हमारे समक्ष खडे है, उन समस्याओं पर और सवालों पर हिन्दी साहित्यकारों ने किस हद तक लेखनी उठाई है उसे जानने का प्रयास भी किया गया है। इसके साथ-साथ ग्रामीण जनजीवन, कथावस्तु, पात्र, भाषा, प्रतिक, उद्देश्य, संस्कृति मेें भी जो बदलाव आये है उन्हें भी उजागर करने का प्रयास हुआ है।

    1980 Ke Bad Hindi Sahitya

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  • आधुनिक हिंदी काव्यः भाव एवं विचार सौंदर्य

    आधुनिक हिंदी काव्य की धारा निरंतर प्रवहमान रही है। नव-नवीन विषयों की अभिव्यक्ति इसमें दृष्टिगोचर होती है। संवेदना के विविध आयामों के दर्शन हमें आधुनिक हिंदी काव्य में परिलक्षित होते हैं। इस काव्यधारा को विकसित करने में अनेक कवियों ने अपना मौलिक योगदान दिया है। जिनमें मैथिलीशरण गुप्त, निराला, पंत, दिनकर, बच्चन, नागार्जुन, अज्ञेय, भवानी प्रसाद मिश्रा, दुष्यंतकुमार, धूमिल, उदय प्रकाश, कात्यायनी, अनामिका, सुशीला टाकभौरे एवं निर्मला पुतुल विशेष उल्लेखनीय हैं। इस ग्रंथ के अंतर्गत इन कवियों की कविताओं में निहित भाव एवं विचार सौंदर्य पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह ग्रंथ आधुनिक हिंदी काव्य की विशेषताओं जानने-समझने में उपादेय सिद्ध होगा।

    Aadhunik Hindi Kavya : Bhav and Vichar Saundrya

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  • आधुनिक हिंदी साहित्य विविध परिप्रेक्ष्य

    भारतीय एवं वैश्विक साहित्यमें हिन्दीने अपनी विशेष पहचान बनायी है। हिन्दी विश्व भाषा बनी है। आधुनिक हिन्दी साहित्य विविध परिप्रेक्षय में हिन्दी साहित्य की विविध विधाओंपर सृजन किया है। सौभाग्यसे आंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रान्तीय स्तरपर संगोष्ठियों के हेतु संशोधनात्मक आलेख नये संदर्भोमें प्रस्तुत करने का अवसर मिला जिसमें भूमंडलिकरण तथा प्रादेशिक भाषा संघर्ष, इंटरनेट और हिन्दी, अनुवादके क्षेत्रमें अनुसंधान, विश्व भाषाओसे हिन्दी मे अनूदित काव्य साहित्य, हिन्दी भाषा का आंतर्राष्ट्रीय स्वरुप, हिन्दी में अनूदित मराठी दलित साहित्य, साठोत्तरी हिन्दी नाटक, नयी कहानी का अनुनातन रुप, भक्त कवियों के काव्य की प्रासंगिकता आदि विषयोंपर गहन, अध्ययन संशोधन किया है। ये आधुनिक हिन्दी साहित्य अध्ययन-अध्यापन के लिये नई दिशा दे सकता है।

    Adhunik Hindi Sahitya Vividha Pariprekshya

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  • इसलिए मैं कोई और हूँ

    Isliye Mai Koi Aur Hoon

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  • कथा संचयन के विमर्श

    कहानी साहित्य की लोकप्रिय विधा है जनमानस को प्रभावित करने की इसमें अद्भुत क्षमता है। यह मानव जीवन के आदर्शों तथा उसकी जटिलताओं को अभिव्यक्ति प्रदान करती है। यह निर्विवाद है कि कहानी कहना, सुनना और सुनाना मनुष्य जाति की आदिम प्रवृत्ति है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ उसके कहने और सुनने के ढग में भी परिवर्तन होता गया है। इस प्रकार आगे चलकर इस प्रकार, जातक, हितोपदेश, पंचतंत्र आदि की कहानियों की रचना हुई है।

    कहानी कहने की प्रवृत्ति मनुष्य में चिरकाल से विद्यमान रही है। अपने विचारों को प्रेषित करने की भाषायी क्षमता के कारण वह अपने अनुभवों को दुसरो से कहने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित होता रहा है। आपबीती और जगबीती को सुनने-सुनाने की परम्परा सभ्यता की विकास-यात्रा के साथ-साथ सभी देशों की सांस्कृतिक निधि रही है। वक्ता तथा श्रोता की अपनी रुचि के अनुसार युग विशेष की घटनाओं का वर्णन आनेवाली पीढियों का मौलिक रूप में मिलता गया और उनमें परिवर्तन-परिवर्धन भी होते रहे। इस प्रकार वैदिक युग की कथाओं से लेकर आज तक की कहानियाँ और लोककथाएँ किसी-न-किसी परम्परा से जुडी रही है। आधुनिक युग में विषय के साथ चरित्र-वैविध्य और अभिव्यक्ती-पक्ष की ओर भी यथेष्ट ध्यान दिया गया। आज ‘कहानी’ से अभिप्राय गद्य की विधा-विशेष से है जिसने बीसवीं शताब्दी में अनेक मोड लिए हैं और जो वर्तमान साहित्य-रूपों में सबसे अधिक लोकप्रिय है।

    Katha Sanchayan ke Vimarsh

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  • कथेतर गद्य विधाएँ : विविध विमर्श

    गद्य साहित्य और पद्य साहित्य यह साहित्य की दो शैलियाँ हैं। गद्य साहित्य के दो रूप है- कथात्मक गद्य और कथेतर गद्य। साहित्य की सार्थकता में निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, यात्रा वर्णन, व्यंग्य, डायरी, सम्बोधन आदि कथेतर गद्य विधाओं का योगदान भी महत्त्वपूर्ण हैं। चरित्रगत अध्ययन एवं वैचारिक लेखन की दृष्टि से निबंध, आत्मकथा, यात्रा-वर्णन, जीवनी आदि विधाएँ काफी महत्त्वपूर्ण है।
    ‘कथेतर गद्य विधाएँ : विविध विमर्श’ इस पुस्तक में वासुदेवशरण अग्रवाल- ‘राष्ट्र का सेवक’ (निबंध), अमृतलाल नागर- ‘तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा’ (संस्मरण), रामवृक्ष बेनीपुरी- ‘रजिया’ (रेखाचित्र), पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’- ‘धरती और धान’ (जीवनी अंश), महात्मा गांधी- ‘चोरी और प्रायश्चित’ (आत्मकथा अंश), रांगेय राघव- ‘अदम्य जीवन’ (रिपोर्ताज), सचिदानन्द हीरानन्द वात्सायन ‘अज्ञेय’- ‘पतझर एक पात’ (यात्रा वर्णन), शंकर पुणतांबेकर- ‘एक गोप कक्ष’ (व्यंग्य), हरिवंशराय बच्चन- ‘प्रवास की डायरी’ (डायरी) तथा स्वामी विवेकानन्द- ‘सम्बोधन: युवाओं से’ (सम्बोधन) आदि कथेतर गद्य विधाओं की रचनाओं की समीक्षा की हैं। इन रचनाओं की समीक्षा से पूर्व मैंने रचनाकारों का जीवन परिचय एवं कृतियों का परिचय दिया हैं।

    95.00
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  • काव्यशास्त्र और साहित्य के भेद

    काव्यशास्त्र की सुदीर्घ परम्परा है। इसका इतिहास लगभग दो हजार वर्षों में फैला हुआ है। ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय चिंतन की परंपरा पल्लवित और विकसित होती रही। जीवन का प्रवाह अनन्त है। अनादि काल से आज तक मानव जीवन के इस अनन्त प्रवाह ने अपने भाव और बुद्धि प्रवाह की असीमितता को मापने-जोखने के लिए अनवरत अध्यवसायपूर्ण कर्म के माध्यम से अनेक प्रकार के घाट निर्मित किए है। शास्त्र, साहित्य, कला, ज्ञान, विज्ञान कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है कि जिसे मानव के भाव और बुद्धि से संचालित कर्म ने अपने स्पर्श द्वारा अलौकिक एवं उपयोगी न बना दिया हो।
    प्रस्तुत ग्रंथ में चिंतन की इस सुदीर्घ परम्परा के प्राय: सभी महत्वपूर्ण मोडों को समेटने का प्रामाणिक प्रयास किया गया है। साथ ही भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र के महान आचार्यो से लेकर बीसवी शताब्दी के आलोचकों के प्रमुख काव्य-सिद्धांतों का विवेचन-विश्लेषण किया गया है। नि:संदेह यह ग्रंथ छात्रोपयोगी बनाने की दिशा में तथा जिज्ञासु छात्रों को दृष्टिगत रखते हुए लिखा गया है।

    Kavyashastra Aur Sahitya Ke Bhed

    250.00
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  • खान्देश का लोकसाहित्य

    भाषा और साहित्य यह एकमात्र ऐसा साधन होता है जिसके माध्यम से हम किसी भी प्रांत अथवा भूप्रदेश की लोक-भाषा, लोक-साहित्य, लोक-संस्कृति तथा लोक-परंपराओं का अध्ययन अध्यापन कर सकते है । वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण के इस युग में जब एक विश्वग्राम, एक विश्वबाजाऱ की तरह एक विश्वभाषा की कल्पना संजोयी जा रही है तब उसके परिणामस्वरूप हम देख रहे है कि आए दिन किसी न किसी लोक-भाषा और लोक-संस्कृति का कैसे लोप होता जा रहा है । सुप्रसिध्द भाषाविद् डॉ. गणेश देवी द्वारा किए गए ‘भाषा सर्वेक्षण’ से प्राप्त निष्कर्ष इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है । इसलिए ऐसी विपरित परिस्थितियों में अपने-अपने भूप्रदेश और प्रांत की लोक-भाषा और लोक-संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करना तथा आने वाली नई पीढ़ी को इससे अवगत कराना यह हर एक का कर्तव्य बन गया है। इसी उद्देश्य को केंद्र में रखकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली ने तथा भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति ने लोक-भाषा और लोक-संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन करने हेतु उसे पाठ्यक्रम में समाविष्ट करने के निर्देश भारत में स्थित सभी विश्वविद्यालयों को दिए हैं । उन्हीं निर्देशों का अनुपालन करते हुए कवियत्री बहिणाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के हिन्दी अध्ययन मंडल ने स्नातक स्तर (बी.ए.) तृतीय वर्ष के षष्ट सत्र के अंतर्गत हिंदी विषय का चयन करने वाले छात्रों के लिए खान्देश का लोक साहित्य यह प्रश्नपत्र रखने का क्रांतिकारी निर्णय लिया । यह निर्णय आगत भविष्य काल में ग्लोबल के साथ-साथ लोकल का नारा बूलंद करेगा यह हमें पूर्णरूपेण विश्वास है ।

    Khandesh Ka Loksahitya

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  • चैत-राम

    स्वार्थ ने व्यक्ति को अंधा बना दिया है। आज कल हर एक व्यक्ति अपनी निजी जिंदगी को सुखकर बनाने के लिए स्वार्थ की इस अंधी दौड़ में भाग रहा है। नि:स्वार्थ भाव से किसी कार्य को करने वालों की तादाद नगण्य होती जा रही हैं। ऐसे समय में मेरी भेंट धुलियाँ जनपद के साक्री तहसील में स्थित ‘बारीपाड़ा’ गाँव के श्री. चैतराम पवार से हुई। चैतराम पवार उच्च शिक्षा विभूषित होते हुए भी अपनी जन्मभूमि से जुड़े रहे। ‘जल, जमीन, जंगल, जानवर और जन’ के लिए उनके द्वारा चलाई जा रही पहल आज पूरे देश के लिए आदर्श और देश के हर व्यक्ति के लिए सराहनीय हैं। उनके कार्य-कर्तृत्व को जानने के पश्चात मुझे महात्मा गांधी जी का स्मरण हुआ। महात्मा गांधी जी का देश के प्रति त्याग और नि:स्वार्थ जन सेवा भाव की एक छोटी-सी झलक मुझे चैतराम पवार में दिखाई दी। मन में आया कि, जनकल्याण के लिए समर्पित ऐसे व्यक्ति के जनकल्याण संघर्ष को मैं अपने तरीके से शब्दबद्ध करु। प्रस्तुत उपन्यास की कथावस्तु में चित्रित प्रसंग ‘आधी हकीकत आधा फसाना’ की उक्ति पर आधारित है। इस लघुउपन्यास की कथावस्तु को आगे बढ़ाने के लिए कुछ प्रसंगों को कल्पित किया हुआ हैं।

    – डॉ. के. डी. बागुल

    Chait-Ram (Jal, Jangal, Jamin, Janwar, Jan Aur Main)

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  • जनसंचार माध्यम और हिंदी

    Jansanchar Madhyam Aur Hindi

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  • जीवन परिवर्तन के 21 प्रभावी सूत्र

    मैं विश्वास के साथ यह कह सकता हु कि
    इस किताब को पढकर आप अपनी
    सोच में परिवर्तन कर सकते है,
    आपकी सोच में परिवर्तन करने से
    आपके व्यवहार में परिवर्तन आता है,
    और व्यवहार में परिवर्तन आने से
    आपके साथ होने वाली घटनोओं में
    परिवर्तन आता है और आपके साथ
    होने वाली घटनाओं से आपके जीवन
    में परिवर्तन आता है, इसलिए जिंदगी
    में आगे बढना है तो पढना है।

    Jivan Parivartan ke 21 Prabhavi Sutra

    225.00
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  • दलित साहित्याचे बहुविध आयाम

    दलित समाजाला डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी आत्मजागृतीचा जो वसा दिला, त्यातून दलित समाजातील नवशिक्षित तरुण आपले प्रश्न, समस्यांना लेखनाच्या माध्यमातून उजागर करू लागला. आपल्यावर व समाजावर होणार्‍या अनन्वित छळाचा व अन्यायाचा प्रतिकार करू लागला. आपल्या जगण्याला, प्रश्नांना तो साहित्यातून कलात्मक रूप देऊ लागला. त्यातूनच दलित जीवनजाणिवा अभिव्यक्त करणारे साहित्य निर्माण झाले. 1960च्या दशकानंतर या साहित्याने एका चळवळीचे, प्रवाहाचे रूप धारण केले, तोच पुढे दलित साहित्याचा प्रवाह म्हणून विकास पावला. या साहित्यातून दलित समाजाच्या सर्व अंगोपांगांचे, त्यांच्या प्रश्नांचे, हक्क, न्याय, समानतेच्या मागणीचे संदर्भ त्यांच्या खास अशा भाषिक व्यवस्थेतून जीवनजाणिवांसह चित्रित झाले आहेत. दलित साहित्य हे व्यक्तीच्या जगण्याला प्रतिरोध करणार्‍या व्यवस्थेच्या विरोधात निर्माण झालेले साहित्य आहे. जगण्याच्या धडपडीला अर्थ मिळवून देणारे, माणसाचे माणूसपण सिद्ध करण्यासाठी, परंपराधिष्ठित व्यवस्थेला आपल्या जगण्याविषयीचे प्रश्न विचारणारे, मानवी मूल्यांचा पाठपुरावा करणारे, साहित्य म्हणून दलित साहित्याने मराठी साहित्यविश्वातच नव्हे, तर जागतिक साहित्यविश्वात स्वतंत्र ओळख निर्माण केली आहे. वंचितांचे, पीडितांचे, अन्यायाविरुद्ध लढा उभारणारे साहित्य म्हणून दलित साहित्याचा झालेला गौरव विश्वविख्यात आहे. हीच बाब लक्षात घेऊन आम्ही ‘भारतीय भाषांतील दलित साहित्य’ या विषयावर आंतरराष्ट्रीय चर्चासत्राचे आयोजन केले होते. मराठी भाषेतून आलेल्या संशोधक विद्यार्थी, महाविद्यालयांतील प्राध्यापक व अभ्यासकांचे लेख या पुस्तकात समाविष्ठ करत आहोत. मराठी दलित साहित्याच्या बहुविध आयामांचा वेध घेणारे लेख या पुस्तकात समाविष्ट आहेत.
    स्वतःचे अस्तित्व स्वतःच्या बळावर टिकवणारा एक सकस साहित्यप्रवाह म्हणून दलित साहित्याचे स्थान महत्त्वपूर्ण आहे. या साहित्यप्रवाहातील लेखनप्रकारांची चर्चा व्हावी ही मराठी भाषाविभागाची भूमिका होती. यानिमित्ताने जाणते अभ्यासक, नवोदित अभ्यासक व संशोधक यांचे विचारमंथन घडवून आणण्याचा प्रयत्न केलेला आहे. दलित साहित्यातील साहित्यप्रकारांची चर्चा, त्यांतील निवडक नोंदी, या साहित्याच्या आकलनाच्या दिशा यांसंदर्भात विविध अभ्यासकांच्या निबंधांना येथे स्थान दिले गेलेले आहे. या अर्थानेच ‘दलित साहित्याचे बहुविध आयाम’ नवोदितांसमोर येतील.

    (संपादकीय मधून)

    Dalit Sahityachea Bahuvid Ayam

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  • प्रतिनिधि लघुकथाएँ एक अध्ययन

    कहानी कहने की प्रवृत्ति मनुष्य में चिरकाल से विद्यमान रही है। आपबीती और जगबीती को सुनने-सुनाने की परम्परा सभ्यता की विकास-यात्रा के साथ-साथ सभी देशों की सांस्कृतिक निधि रही है। कहानी साहित्य की लोकप्रिय विधा है। कथा की परम्परा बहुत पुरानी है। पहले के जमाने में जनसाधारण का ज्ञान संकुचित और सिमीत था, अतः उन्हें बहुत ही सरस व लोचदार तरीके से समझाने की आवश्यकता थी। इसका निर्वाह कहानी ने बडी सफलता से किया। पहले कथा और बाद की कहानी काफी लम्बी और वर्णनात्मक हुआ करती थीं किन्तु कालान्तर में इनका कलेवर संकुचित होता गया, क्योंकि एक तरफ जनसाधारण के ज्ञान का विस्तार होता गया तो दुसरी और उसकी व्यस्तता भी बढती गई, समय का अभाव भी होता गया। अतः कथा अब लघु आकार की होने लगी और लघुकथा के नाम से ख्यात होने लगी।
    इस पुस्तक में कहानी एवं लघुकथा का उद्भव एवं विकास, कहानी एवं लघुकथा के तत्वों का विवेचन, कहानी एवं लघुकथा में अंतर और हिंदी की प्रतिनिधिक 20 लघुकथाओं का संकलन किया गया है। जो शोधार्थी एवं विद्यार्थियों को लिऐ महत्वपूर्ण है।

    125.00
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  • प्रयोजनमूलक हिंदी : विविध आयाम

    Prayojanmulak Hindi Vividh Aayam

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  • भाषिक संप्रेषण : एक कला

    Bhashik Sanpreshan : Eka Kala

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  • मीडिया लेखन

    आधुनिक काल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने बहुत प्रगति की है। आज विज्ञान ने हमें नित नवीन, सुविकसित संचार माध्यम प्रदान किए हैं। वर्तमान युग में पत्र-पत्रिकाएँ, आकाशवाणी, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, व्हॉस्अप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्ट्राग्राम आदि जैसे जनसंचार के माध्यम अत्यंत प्रभावी रूप से सूचना के प्रसारण का काम कर रहे हैं। हमारी आवश्यकता के अनुसार हम इन संचार माध्यमों का उपयोग करते हैं। लाखों किलोमीटर दूर रहनेवाले विभिन्न जाति, वर्ग, संप्रदाय और भाषाओं के लोग अब एक साथ आसानी से एक दूसरे के साथ इन माध्यमों के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। आधुनिक युग में मीडिया का सामान्य अर्थ समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टेलीविजऩ, रेडियो, इंटरनेट आदि से लिया जाता है। मीडिया के लिए लेखन, साहित्यिक लेखन से अलग है। पत्रकारिता के पाठक या दर्शक वर्ग की समझ साहित्यिक पाठक वर्ग की तुलना में कहीं ज्यादा सामान्य होती है।
    ‘मीडिया लेखन’ पुस्तक अध्ययन की सुविधा के दृष्टि से पाच अध्यायों में विभाजित किया हैं। प्रथम अध्याय में पत्रकारिता के स्वरूप, महत्त्व, आवश्यकता एवं उसके प्रकारों का विवेचन किया गया है। द्वितीय अध्याय विज्ञापन के लेकर है जिसमें विज्ञापन को स्वरूप, महत्त्व, आवश्यकता एवं विज्ञापन के प्रकारों को स्पष्ट किया गया है। तृतीय अध्याय प्रिंट मीडिया पर केन्द्रित है। इस अध्याय में फीचर लेखन, यात्रा वृत्तांत, साक्षात्कार एवं पुस्तक समीक्षा का विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को लेकर है। इस अध्याय में रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म एवं पटकथा लेखन की जानकारी दी गयी है। अंतिम अध्याय अर्थात पंचम अध्याय में सोशल मीडिया का विवेचन व्हाट्सप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि उसके माध्यमों द्वारा किया गया हैं। प्रस्तुत पुस्तक विद्याथियों के साथ-साथ हिन्दी प्रेमी तथा अध्ययन कर्ताओं को भी निश्चित रूप से उपयुक्त साबित होगी।

    Mediya Lekhan

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  • यशपाल : यात्रा साहित्य विचार बोध की प्रासंगिकता

    यशपाल बहुमुखी प्रतिभाके धनी है। उन्होंने उपन्यास कहानियाँ, नाटक, संस्मरण, आत्मकशा, यात्रा वर्णन आदि का लेखन किया है। उनकी विदेश यात्राओंका हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है। उन्होंने मॉरिशस, जर्मनी, रुस, चेकोस्लेवाकीया, इटली, इंग्लैंड, अफगणिस्थान आदि देशो का भ्रमण किया है। यशपाल की यात्राएँ सोद्देश्य थी। उन्होंने विभिन्न देशोंकी सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थितीयोंका चित्रण किया है। अपने अनुभूति की अभिव्यक्तिसे पाठको अवगत कराना उन्हे प्रेरणाएँ, नयी दिशा देना उद्देश रहा है।

    सोवियत देशकी साहित्यिक सांस्कृतिक, सामाजिक उपलब्ध्यिाँ पाठक को नये विचार बोध से अवगत कराती है। यशपालने लेखन में भारतीय संस्कृति और पाश्चात संस्कृति का साम्य और भेद प्रस्तुत किया है। शैक्षिक पद्धतियाँ, परिवर्तन, आधुनिक प्रणालीयाँ, आधुनिक विकास का वह बिंदू है जिसे पढकर पाठक में नई सोच का विचार-बोध जागृत होता है। आशा है पाठक तथा यात्रीयोंको ये यशपाल की यात्राएँ दिशा पथप्रदर्शक का काम करेगी।

    Yashpal : Yatra Sahitya Vichar Bodh Ki Prasangikta

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  • यशपाल का कथा साहित्य

    यशपाल प्रेमचंदोत्तर परंपरा के सशक्त कहानीकार है। उनकी प्रतिभा बहुमुखी है। उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, निबन्ध, आत्मकथा, यात्रावर्णन तथा अनुदित साहित्य का लेखन किया है। उन्होंने लगभग 250 कहानियाँ लिखी है। उनके 17 कहानी संग्रह है। उनमें पिंजरे की उडान, वो दुनिया, ज्ञानदान, अभिशप्त, तर्क का तुफान, धर्मयुद्ध, उत्तमी की माँ, सच बोलने की भूल, फूलोंका कुर्ता, चित्रका शिर्षक, ओ भैरवी, लैम्पशेड, खच्चर और आदमी आदि प्रमुख है।

    यशपाल की कहानियोंमें युगजीवन की असंगतियों एवं व्यवस्था की विकृतियों का चित्रण है। मानव जीवनसे सम्बन्धित सभी समस्याओं का उद्घाटन यशपाल की कहानियोंमें मिलता है। यशपाल मार्क्सवादी है; अतः साम्यवाद की स्थापना करना उनका अभिष्ट है। आजकी पूँजीवादी व्यवस्थाको नष्टकर वर्गहीन समाजव्यवस्था का निर्माण करना यशपाल ध्येय है। यशपाल ने समाजमें प्रलित कुरीतियों, खोखले आदर्शोपर करारा व्यंग्य किया है। संकीर्ण मानसिकतासे ग्रस्त व्यक्ति को विकासोन्मुख गति की ओर अग्रेसर होने के लिए प्रोत्साहित किया है।

    निस्संदेह प्रस्तुत ग्रंथ यशपाल तथा उनका कथा साहित्य का अध्ययन, अनुसंधान कर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

    Yashpal Ka Katha Sahitya

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  • यात्रा साहित्य का इतिहास

    भारतीय समाज और साहित्य में स्वतंत्रता के बाद आमूलाग्र परिवर्तन हुआ| परिवर्तन की तेज आँधी ने भारतीय समाज को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है| साहित्य में नई विधाओं का जन्म हुआ वैसे-वैसे कई साहित्यकारों ने अपनी तुलिकाओं से इनमें तरह-तरह के रंग भरे| उसी तरह हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधा यात्रा-साहित्य भी है| कालानुरूप आधुनिक युग के सभी साहित्यकारों ने इस विधा को स्वीकार करते हुए उसके महत्त्व को भी प्रतिपादित किया है|
    मानव जीवन स्वयं एक यात्रा है| देश-विदेश के कई घुमक्कड प्राचीन काल से यात्राएँ करते आ रहे हैं| यात्रा का मानव विकास एवं संस्कृतियों के आदान-प्रदान में बहुत महत्त्व है| ‌‘मेरी जापान यात्रा’ यह यात्रा-साहित्य राष्ट्रसंत श्री तुकडोजी महाराज इनके भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्वधर्म-विश्वशांति परिषद, जापान में सम्मिलित होने का यात्रा-वृत्तांत है| जापान देश की प्रगति का सार भी श्री राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने बीच-बीच में प्रस्तुत किया है और भारत देश के प्रगति की कामन की है|

    Yatra Sahitya Ka Itihas

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  • लोकसाहित्य विमर्श

    बोलीभाषाएँ लोकजीवन के लोकमानस का संचित रुप है। बोलीभाषाओंका साहित्य लोकसमुदायमें अनुभूतियोंका प्रतिबिम्ब है। भारत में विभिन्न बोलीभाषाएँ बोली जाती है। उनमें खानदेश की अहिराणी बोली का स्वतंत्र रुप है। अहिराणी अतिप्राचीन बोली है। उसके संदर्भ में इ.स. पूर्व 250 वर्ष पहले मिलते है। मागधी, सौराष्ट्री, शौरसेनी, पैशाची प्राकृत आदि प्राचीन भारतीय भाषाोंसे अहिरानी का उद्भव के प्रमाण तत्कालीन, शिलालेखों, ताम्रप्रटोंमें मिलता है।

    अभिरोंकी या अहिरों की अहिराणी बोली भाषा है। अभीरोंका उल्लेख महाभारत में मिलता है। चौथी शति में नासिक खानदेश प्रदेशपर अभिरोंका राज्य था। इसका प्रमाण मिलता है। सदियों से महाराष्ट्र में मराठी, कोकणी, कानडी, फारसी, अरबी, वर्‍हाडी, हिन्दी, अंग्रजी, आदि भाषाओं के संपर्कमें आनेपर भी अहिराणी का मौलिक-मौखिक रुप आज भी सुरक्षित है। प्रस्तुत पुस्तक में विस्तारपूर्वक अहिराणी लोकसाहित्य का परिचय पाठकको हो सकता है। अहिराणी बोली भाषा के अध्ययन-अध्यापन कर्ताओंके लिए ये पुस्तक उपयुक्त सिद्ध होगी।

    Loksahitya Vimarsha

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  • लोकसाहित्यः समाज और संस्कृति

    भारतवर्ष की समग्र लोकबोलियों में श्री राम तथा सीता के आदर्शोे का ही वर्णन है । श्रीराम मे आदर्शो को जनमानस में पहुँचाने की कोशिश का जीता-जागता प्रमाण है । आज जरूरत है इन आदर्शो को अपनाने की । इसीलिए लोकसाहित्य पर नये आयाम से प्रकाश डालना बहुत जरूरी है ।

    आज दुनिया में एक क्रांति बडी तेजी से फैलती जा रही है । लोक मानने लगे है कि विदेशी भाषा ही सब कुछ है । यह सच है कि ङ्गग्लोबलायजेशनफ के इस दौर में हमने पश्चिमी देशों की नकल करना तो शुरू कर दिया, उनके नियमों को नही अपनाया । पैसा ही सबकुछ समझकर विदेशी भाषा सहित्य के मोहपाश में पडे है और असली देशी भाषाओ लोकसाहित्य की उपेक्षा कर वह पिछड रहा है । विदेशी भाषा तथा दरदर्शन के विभिन्न चॅनेल्स के कारण इन तमाम परिवर्तनों का प्रभाव बच्चों पर बडे पैमाने पर पड रहा है । परिवर्तन के दुष्परिणामों को रोकने के लिए मूलभूत सोच में बदलाव लाना होगा । प्रस्तुत ग्रंथ में आपको भारतीय लोकसाहित्य का समाज तथा संस्कृति का सुदर्शन होगा ।

    Loksahitya : Samaj Aur Sanskriti

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  • संपादन, लेखन और साहित्य

    संचार व्यवस्था समाज की प्रगति, सभ्यता और संस्कृति के विकास, संरक्षण और संवर्धन का माध्यम है। समाज तभी विकासशील, परिवर्तनशील रहेगा जब उसे सही ढंग से स्थानिय, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक, राजनीतिक आदि घटनाओं की सही और स्पष्ट जानकारी होगी। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और नव इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का आज सर्वत्र वर्चस्व स्थापित हो रहा है, लेकीन इस बीच भी प्रिंट माध्यम अपनी साख बनाए हुए है। क्योंकि समाचार लेखन एक विशिष्ट कला है। समाचार दुनिया की खबरें घरों मे पहुँचाता है। लेख के माध्यम से किसी एक विषय पर विचारप्रधान बातें पाठकों तक पहुँचाई जाती है। इसलिए आधुनिकता के इस दौर में मुद्रण माध्यम (प्रिंट मीडिया) का प्रभाव बरकरार है।

    Sampadan Lekhan Aur Sahitya – Mudrit Madhyam

    110.00
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  • समाज निर्माण में हिन्दी एवं अंग्रेजी सहित्य का योगदान

    देश-प्रदेश में स्थित राजकीय व्यवस्था एवं प्रशासकीय व्यवस्था से अगर कोई गलती हो जाती है तो उसका असर समाज के सम्मुख रखने का कार्य प्रसारमाध्यमों के द्वारा होता है। तो सहित्यक ार अपने साहित्य में शब्द – बध करके समाज के प्रत्येक व्यक्ती तक साहित्य के माध्यम से पहुचाकर उचित बदलाव लाने का प्रयास करता है। जागतीकिकरण के इस काल में वैद्यकीय, अभियांत्रीक ी, तकनीकी, कृषि, औद्यागिक आदि सभी क्षेत्र में विज्ञान एवं तंत्रज्ञान से उचित मुकाम हासिल करते हुए विज्ञान एवं तंत्रज्ञान का उपयोग केवल मानव की प्रगति के लिए ही हो यह वेश्विक एवं सामाजिक मूल्य हर एक राष्ट्र ने आत्मसात करना आवश्यक है। इसीलिए विज्ञान एवं तंत्रज्ञान की प्रगति के साथ-साथ हर एक मानव मन पर सामाजिक मूल्यो का संस्कार होने के लिए साहित्य अत्यावश्यक है जो दीर्घकाल तक समाज में अपना प्रभाव बनाये रखता है। साहित्य चाहे किसी भी प्रादेशीक भाषा में क्यों न हो,
    भाषा केवल एक माध्यम है पर साहित्य एक गहन विचार है। इसीलिए प्रीावी साहित्य विचार समाज में स्थापित करने के लिए मराठी, हिन्दी एवं अंग्रेजी सहित्यकारों ने इसमे अपना अमूल्य योगदान दिया है जो आज-तक प्रवाहित है और निरंतर जारी रहेगा। आज भी समाज में अनेक अनिष्ठ रुढी-परम्पराएँ स्थित है जैसे – दहेज प्रभा, उसके लिए नारी पर होनेवाला अत्याचार, उसका आर्थिक स्वातंत्र्य, नारी का सामाजिक स्थान, स्त्रीभ्रुणहत्या, नारी सुरक्षा, इन सवालो के साथ – साथ समाज में स्थित अमिर – गरीब के बीच की खाई, सर्व शिक्षा अभियान, ग्रामिण विकास, सु शिक्षत बेरोजगारी का प्रश्न, देश में चल रहा भ्रष्टाचार, न्याय, स्वातंत्र्य, हक एवं कर्तव्य आदि नानाविध समस्याओं का बोलबाला है। जो कभी खत्म नहीं होगी लेकिन सामाज जागृती से वह कम की जा सकती है। उसके लिए साहित्यकार का सहित्य महत्वपूर्ण साबीत हो सकता है। उसके लिए साहित्यकार का साहित्य महत्वपूर्ण साबीत हो सकता है। साहित्यकार अपने साहित्य, महाकाव्य, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा, कविता, कहानी, गज़ल, रेखाचित्र, संस्मरण, डायरी, रिपोर्ताज, लघु कथा, निबंध, लेख, वार्तालेखन आदि के माध्यम से समाज में जागृती निर्माण कर सकते है। इसीलिए साहित्य यह समाज का अभिन्न अंग है जिससे साहित्यकार समाज प्रबोधन और उद्बोधन करता है। जिसमें आूँचलिक वंचितो, दलित, आदिवासीयों की जीवन पद्धतीयों का चित्रण साहित्यकार प्रस्तुत करता है। समाज में सिथत अच्छी-बुरी रीतियाँ एवं समस्याओं को प्रस्तुत करता है। लोकसाहित्य के माध्यम से अच्छी रुढीयाँ, परम्पराएँ, संस्कृति का अविष्कार सहित्यकार समाज के सामने रखता है। साहित्यकार साहित्यद्वारा नीति-अनीति का पाठ पढता है। मानवता धर्म की सीख वह अपने सहित्य के द्वारा देता है जिससे समाज में राष्ट्रीय एकात्मता की संकल्पना दृढ बनती है । साहितय के कारण जागतिक समाज व्यवस्था का ज्ञान होता है। देश की ऐतिहासिक घटनाओं का ज्ञान मिलता है जिससे भविष्यकालीन दिशा का मार्ग भलिभाँती समज में आता है। साथ ही समकालिन राजकीय परिस्थितियों की जानकारी भी मिलती है। इतना ही नहीं तो साहित्य के कारण राज्य घटना एवं मानवी हक तथा कर्तव्यों का बोध भी बडी गहराई से होता है।

    Samaj Nirman Main Hindi Evam Engreji Sahityaka Yogdan

    350.00
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  • साहित्य, पटकथा और फिल्मांतरण

    Sahitya, Patkatha Aur Filmantaran

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  • सिनेमा और साहित्य

    Cinema Aur Sahitya (Eletronic Madhyam)

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  • सुगम काव्यशास्त्र

    काव्यशास्त्र की सुदीर्घ परम्परा है। इसका इतिहास लगभग दो हजार वर्षों में फैला हुआ है। ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय चिंतन की परंपरा पल्लवित और विकसित होती रही। जीवन का प्रवाह अनन्त है। अनादि काल से आज तक मानव जीवन के इस अनन्त प्रवाह ने अपने भाव और बुद्धि प्रवाह की असीमितता को मापने-जोखने के लिए अनवरत अध्यवसायपूर्ण कर्म के माध्यम से अनेक प्रकार के घाट निर्मित किए है। शास्त्र, साहित्य, कला, ज्ञान, विज्ञान कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है कि जिसे मानव के भाव और बुद्धि से संचालित कर्म ने अपने स्पर्श द्वारा अलौकिक एवं उपयोगी न बना दिया हो।

    प्रस्तुत ग्रंथ में चिंतन की इस सुदीर्घ परम्परा के प्राय: सभी महत्वपूर्ण मोडों को समेटने का प्रामाणिक प्रयास किया गया है। साथ ही भारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र के महान आचार्यो से लेकर बीसवी शताब्दी के आलोचकों के प्रमुख काव्य-सिद्धांतों का विवेचन-विश्लेषण किया गया है। नि:संदेह यह ग्रंथ छात्रोपयोगी बनाने की दिशा में तथा जिज्ञासु छात्रों को दृष्टिगत रखते हुए लिखा गया है।

    Sugam Kavyashastra

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  • -33%

    हाफ विडो

    बेनजीर यानि हाफ विडो, जिसके शौहर-आफराज को भारतीय सेना ने अफ्स्पा कानून के तहत कैद किया है, एक ऐसा कानून जिसके बारे में भारत के 65% लोग कुछ नहीं जानते, न तो उन्हें कश्मीर का इतिहास पता है, ना ही कश्मीर का वर्तमान. एक ऐसा इतिहास, जिसकी परछाई अपने ही वजूद पर भारी है, जो वर्तमान और भविष्य को आजादी की आग में जला रहा है और कश्मीर को जन्नत से जहन्नुम बना रहा है. कश्मीर हिन्दुस्तान के सर का ताज था और सदा रहेगा और इसी खातिर हमारी सेना परदे के पीछे रहकर कुछ ऐसे महान काम कर रही है, जो चिनार के पत्तों की तरह हवाओं में बहकर खो जाते है. इन्ही बातों और मुद्दों को उजागर करती, बेनजीर और आफराज की ये प्रेम कहानी है, जिसकी नायिका बेशक बेनजीर है, मगर कहानी का असली हीरो हमारी सेना का जाबाज फौजी है… ‘हाफ विडो’ की ये कहानी, जो कहती है…

    बन्दिशो में रहकर हम तुम न मिल पाए कभी, ये मोहब्बत भी कमबख्त कश्मीर बनके रह गयी…

    Half Widow

    Original price was: ₹299.00.Current price is: ₹199.00.
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  • हिंदी आशययुक्त अध्यापन पद्धती (भाग 1)

    Hindi Ashayayukta Adhyapan Paddhati (Bhag 1)

    175.00
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  • हिंदी आशययुक्त अध्यापन पद्धती (भाग 2)

    Hindi Ashayayukta Adhyapan Paddhati (Bhag 2)

    110.00
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  • हिंदी व्याकरण एवं अभिव्यक्ति कौशल

    मनुष्य जीवन में स्थित विचार, अनुभव, भावना, कल्पना आदि को व्यक्त करने के लिए भाषा आवश्यक होती है। व्याकरण को भाषा की आधारशिला माना जाता है। शुद्ध लिखना, बोलना, पढना और व्यवहार करना भाषा के व्याकरण से ही सीखा जा सकता है। मनुष्य का भावनिक विकास, चिंतनशीलता और कलात्मकता में भाषा की शिक्षा समन्वय की भूमिका निभाती है। शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान के प्रसार के साथ उसमें अनेक परिवर्तन होने लगे। इंटरनेट ने तो मानो जैसे सारी दुनिया ही घर में लाकर बसा दी हो। साक्षात्कार लेखन, वक्तृत्व, वाद-विवाद, संक्षेपण, पल्लवन, जनसंपर्क, सूत्र संचालन, अनुवाद, प्रामाणिक आलेखन, टिप्पन लेखन आदि ऐसे अनेकानेक क्षेत्रों में हिंदी भाषा को अच्छी तरह से जानने-समझने वाले मानव संसाधन की बडी आवश्यकता है। इस क्षेत्र में प्राप्त की निपुणता रोजगार का साधन उपलब्ध कराने में बहुत सक्षम है। व्यावहारिक हिंदी भाषा आज अत्यंत आवश्यक है। आधुनिक काल में विभिन्न प्रयोजनों के लिए, नये-विकसित होते अनेकानेक क्षेत्रों में हिंदी भाषा का यथायोग्य उपयोग एक चुनौती है। और भाषा उपयोग के कौशल को आत्मसात किए बिना इस चुनौती से पार पाना संभव नहीं है।

    Hindi Vyakaran Evam Abhivyakti Kaushal

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